वैक्सीन ( टीका) और कोरोनावायरस
जब हम छोटे थे तो पोलियों से बचाव के लिए माँ बगल वाली आँगन- बाड़ी में ले जाती थी और वहां हमारे मुंह में आँगन- बाड़ी वाली दीदी दो बूँद कोई कडवी से चीज डाल देती थी| सब कहते, ये पोलियों का टीका है| लेकिन आखिर ये टीका होता क्या है? क्यों जरूरत है हमें इसकी और आज जब पूरे विश्व पर कोरोना वायरस का संकट मंडरा रहा है तो हम टीकों पर बात क्यों कर रहे हैं| इन तमाम सवालों के जवाब हैं इस आलेख में| लेखक हैं प्रीति प्रकाश, मॉडरेटर हैं प्रीति प्रकाश|
सरकारी अस्पताल में जन्म लेने के तुरंत बाद डॉक्टर हमें एक चार्ट पेपर दिया और भाभी को समझाया कि बच्ची को किस- किस महीने, कौन - कौन से टीके लगेंगे| भाभी ने सभी दिशा निर्देशों का पालन किया और नियमित समय पर सारे टीके लगवाएं| आज हमारी भतीजी स्वस्थ है और पूरे घर को अपनी बातों और शरारतों से गुलजार कर के रखती है| ये कहानी सिर्फ मेरी भतीजी के नहीं है| देश में जन्म लेने वाले हर बच्चे के माता- पिता अगर जागरूक हैं तो वो इस बात का ख्याल रखते हैं कि उनके बच्चे का टीकाकरण नियमित रूप से हो| सरकार भी इस बात का पूरा ध्यान रखती है कि इस सम्बन्ध में सभी जागरूक बने | तभी तो अमिताभ बच्चन जैसे बड़े अभिनेताओं को इस काम के लिए चुना जाता है| बच्चन जी का एक ऐड जो सम्पूर्ण टीकाकरण पर है काफी सूचना प्रद है|
लेकिन अब सवाल उठता है कि आखिर यह टीका होता क्या है? आईये समझने की कोशिश करते हैं|
टीका क्या होता है- टीका जिसे अंग्रेजी में वैक्सीन भी कहा जाता है विषाणु और जीवाणु जनित रोगों से हमारी सुरक्षा करता है| कैसे? हमारे शरीर में उस रोग की प्रतिरोधी क्षमता विकसित करके| हमारा शरीर एक बहुत कमाल की मशीन है| वह अपनी टूट- फूट की मरम्मत स्वयं कर लेता है| छोटी- मोटी बीमारियाँ जैसे सर्दी जुकाम से भी लड़ने में सक्षम है लेकिन जब किसी ऐसी बीमारी का हमला होता है जिसके प्रति हमारे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता नहीं होती तो स्वस्थ होने के लिए हमें बाहर से इलाज की जरूरत होती है| लेकिन क्या इससे बेहतर नहीं है कि हम अपने शरीर की क्षमता को ही बढा ले| टीकाकरण यही काम करता है|
कैसे बढाता है टीकाकरण हमारी प्रतिरोधक क्षमता- मान ले एक बीमारी है - क, जो वायरस से होती है| इस बीमारी का कोई इलाज हमारे पास नहीं और यह बहुत घातक भी है| इसलिए वैज्ञानिक ऐसा सोचते हैं कि क्यों न शरीर को ही इससे लड़ने में सक्षम बना दिया जाए| यानि जब तक क्रिकेट में विरोधी टीम की तेज गेंदों को झेलने की प्रैक्टिस अपने टीम में रहते हुए कर लेना|
इस काम को करने के मुख्यतः तीन तरीके हैं-
1. जीवित दुर्बल टीका
2. निष्क्रिय टीका
3. उप- इकाई या सयुग्मन टीका
जीवित दुर्बल टीके बनाने के लिए वैज्ञानिक सबसे पहले रोगाणु के वायरस को लेते हैं और प्रयोगशाला में उसे उगाते हैं अर्थात उसकी वृद्धि को संभव बनाते हैं| बार- बार वायरस की वृद्धि कराई जाती है और फिर उनमे से उस वायरस का चयन किया जाता है जो कम उग्रता वाले हो| कम उग्रता का तात्पर्य है जो बहुत कमजोर हो जिससे उनका कोई असर हमारे शरीर पर नहीं पड़े| फिर इन्हें ही टीकों के रूप में हमारे शरीर में डाल दिया जाता है| चूँकि यह बहुत कमजोर होते हैं तो हमारे शरीर को नुकसान तो नहीं पहुंचा पाते लेकिन शरीर में जाकर इतनी संख्या में गुणित हो जाते हैं जिससे शरीर उनके खिलाफ एक प्रतिरक्षा तंत्र विकसित कर ले| इस तरह शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र विकसित हो जाता है | तो अब, जब असली मजबूत वायरस का भी हमला होता है तो वह लड़ने में सक्षम रहता है| ऐसे टीकों के उदाहरण हैं- खसरा, गलगंड और रूबेला के टीके|
कुछ टीके निष्क्रिय भी होते हैं| इन्हें तैयार करने के लिए प्रयोगशाला में सर्वोत्तम नस्ल के विषाणु या जीवाणु लिए जाते हैं और उनका गुणन कराया जाता है| फिर कुछ रसायनों जैसे फॉर्मल डी हाईड या फार्मेशन द्वारा उन्हें निष्क्रिय या मृत कर दिया जाता है| ये जीवाणु या विषाणु संक्रमण तो नहीं कर सकते लेकिन एंटीबाडी के निर्माण के लिए बी कोशिकाओं को उत्प्रेरित कर सकते हैं| 'पोलियो' और 'हेपेटाइटिस ए' का टीका इसी प्रकार बनता है|
इसे और स्पष्ट रूप से समझने के लिए हम इस वीडियो का सहारा ले सकते हैं|
टीकों की एक किस्म उप- इकाई या सयुग्मन भी होती है| इसके निर्माण में पूरे विषाणु या जीवाणु के स्थान पर उनके केवल उन्ही हिस्सों का इस्तेमाल करते हैं जो किसी प्रतिरक्षी अनुक्रिया या एंटीजॉन को प्राप्त करते हैं| 'हेपेटाइटिस बी' के टीके इसके ही उदाहरण हैं|
तो कितना आसान होगा कोरोनावायरस का टीका तैयार कर पाना- कोरोना वायरस जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है वायरस जनित रोग है| आज पूरा विश्व तीव्रता से इसकी जद में आ रहा है और उतनी ही तीव्रता से जारी है इससे निपटने की कोशिश| ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि 12- 18 महीने में इसका टीका इजाद कर लिया जाएगा| लगभग 35 कम्पनियाँ और शैक्षणिक संस्थान इस बीमारी के टीके की खोज में लगे हैं| इसी वर्ष जनवरी माह में चीन ने SARS - CoV 2 का सिक्वेंस साझा किया ताकि शोध में तेजी आ सके|
लेकिन बिना क्लिनिकल ट्रायल के इस वैक्सीन का प्रयोग करना सुरक्षित नहीं है| अभी चार कम्पनियाँ क्लिनिकल ट्रायल के चरण तक पहुँच चूँकि हैं लेकिन अभी वक्त लगने वाला है| क्लिनिकल ट्रायल के भी कुल चार चरण होते हैं| पहले चरण में कुछ स्वस्थ लोगो को यह वैक्सीन दी जाती है और फिर एक से डेढ़ साल तक इन्तजार किया जाता है कि इसका कोई साइड इफ़ेक्ट तो नहीं है या फिर यह कितना प्रभावी है| कोरोनावायरस के केस में यह अवधि तीन से चार महीने रखी गयी है|. ट्रायल के दुसरे चरण में यही टेस्ट कुछ ज्यादा लोगो पर रैंडमली किया जाता है| तीसरे चरण में और ज्यादा लोगो पर| चौथा चरण बाजार में वैक्सीन लाने से पूर्व सरकारी अनुमति लेने से सम्बंधित होता है| चूँकि कोरोनावायरस अभी वैश्विक महामारी में तब्दील हो चुका है| इसलिए इसका क्लिनिकल ट्रायल जल्दी करने की उम्मीद है| तब तक हम सब का कर्तव्य है कि हम अपना ख्याल रखें और सोशल डिस्टेंस बना कर रखें|
अफवाहों से बचें और लॉक डाउन अवधि का रचनात्मक उपयोग करे|
भारत सरकार ने एक वीडियो जारी किया है कि क्या करे अगर आपको कोरोना के लक्षण नजर आये तो |
वीडियो उपयोगी और सूचनाप्रद है|
1.https://www.historyofvaccines.org/multilanguage/hindi/node/2351
2.https://hindi.webdunia.com/general-knowledge/how-vaccines-work-science-behind-vaccines-116090300049_1.html
3.https://www.telegraph.co.uk/global-health/science-and-disease/coronavirus-vaccine-latest-covid-19-cure-uk-trials/
बहुत अच्छे ढंग से समझाया गया है।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ
हटाएंमेरा आपको सैलूट हैं एक बात बोली हैं आप इतनी बिस्तार से, अदभुत
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ
हटाएंकई पहलुओं पर एक ही लेख में प्रकाश केवल प्रीति प्रकाश ही डाल सकती है। दीदी आपने बहुत अच्छे से समझाया है ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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