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विश्वास और अन्धविश्वास : नरेंद्र दाभोलकर

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  1. हमने विज्ञान की सृष्टि तो ली लेकिन उसकी दृष्टि नहीं ली| हम आधुनिक कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं और कंप्यूटर सेवा केंद्र का उदघाटन करने के लिए सत्यनारायण की महा पूजा का आयोजन करते हैं| 2.आर्यभट्ट के बाद हजार या बारह सौ सालों में हमारे देश में कई अच्छे राजा हो गए, दार्शनिक हो गए, साहित्यकार हो गए लेकिन वैज्ञानिक मात्र नहीं हुए| इसी कारण हमारे यहाँ जो भी विवाद या चर्चाएं होती रहीं वे सिर्फ यहीं थीं कौन किस पंक्ति में बैठे और कौन न बैठे? पीताम्बर कैसा परिधान धारण करें? कितने स्तरों का जनेऊ परिधान धारण करें? माथे पर तिलक खड़ा लगाएं या तिरछा? चतुर्मास में प्याज और लहसून क्यों खाए और क्यों न खाएं? और क्या गाय की पूंछ मुँह पर हाथ फेरने से पुण्य मिलता है एवं उसका मूत्र पीने से आत्मा का उद्धार होता है आदि| और ठीक उसी वक्त विश्व एक अलग ही दिशा की ओर अग्रसर हो रहा था| 1550 ई. में गोवा में पुर्तगालियों ने छपाई मशीन से मुद्रण कला का आविष्कार किया , जो क्रांतिकारी पहल थी क्योंकि इसके कारण पांडुलिपियों की प्रतिलिपियाँ बनाने के समय में बचत हो गयी और ज्ञान के प्रसार में सहजता आने लगी| 3.भाप की क...